SSC Exam Re-evaluation: बांग्लादेश में बोर्ड परीक्षा के नतीजे अक्सर बच्चों की लाइफ का सबसे बड़ा इम्तिहान होते हैं. पर क्या हो अगर यही नतीजे गलत निकलें? जी, ऐसा ही हुआ है जब दसवीं यानी SSC के नतीजों को दोबारा चेक किया गया तो बहुत से बच्चों के मार्क्स और ग्रेड्स बदल गए. ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है, खासकर तब जब किसी का रिजल्ट खराब होने से उसका पूरा करियर दांव पर लग जाए.
इतने सारे नतीजों में बदलाव क्यों?
अगर आप खबरों पर नज़र रखते हैं, तो आपको पता होगा कि इस बार बांग्लादेश में 6 लाख से ज्यादा बच्चे फेल हुए थे. पर जब उन बच्चों और उनके पेरेंट्स ने नतीजों पर शक करके, उन्हें फिर से चेक करने के लिए अप्लाई किया, तो जो सच्चाई सामने आई वो चौंकाने वाली थी. सिर्फ ढाका एजुकेशन बोर्ड में ही, 92,000 से ज्यादा बच्चों ने 2 लाख से ज्यादा आंसर शीट को दोबारा चेक करने को दिया. इस री-चेकिंग के बाद करीब 3000 बच्चों के नतीजों में बदलाव हो गया. सोचिए, इतने सारे बच्चों के मार्क्स बदल गए.
जब फेल हुए बच्चे भी GPA-5 लाएं
आप ये सुनकर हैरान रह जाएंगे कि सिर्फ ढाका बोर्ड में ही 286 बच्चों के मार्क्स इतने बढ़े कि उन्हें सीधा GPA-5 मिल गया. GPA-5 मतलब, बिल्कुल टॉप का ग्रेड. और उससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि 293 ऐसे बच्चे थे जो पहले फेल हो गए थे, पर री-चेकिंग के बाद वो पास हो गए. कुछ बच्चों का तो GPA-5 तक पहुंच गया, जबकि वो पहले फेल थे. ये साफ बताता है कि पहली बार चेकिंग करने में कितनी बड़ी गलतियां हुईं.
सिर्फ कैलकुलेशन ही चेक होती है
एक और बात समझने वाली है. ये जो दोबारा चेकिंग होती है, इसे सिर्फ ‘री-स्क्रूटनी’ कहा जाता है. इसका मतलब होता है कि बस ये चेक किया जाता है कि मार्क्स ठीक से जोड़े गए हैं या नहीं. अगर किसी टीचर ने मार्क्स कम दिए हैं, तो उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. पेरेंट्स और टीचर्स की मांग है कि पूरे पेपर को एक बार फिर से किसी तीसरे टीचर से चेक कराया जाए, ताकि बच्चों के साथ अन्याय ना हो.
गलतियां हो क्यों रही हैं?
इसके पीछे कुछ खास कारण हैं. बोर्ड को नतीजे 60 दिनों के अंदर ही निकालने होते हैं, इसलिए टीचर्स को कॉपी चेक करने के लिए बहुत कम समय मिलता है. सिर्फ 15 दिन में उन्हें इतने सारे पेपर चेक करने होते हैं. इससे कई बार जल्दबाजी में मार्क्स जोड़ने में या कहीं-कहीं तो मार्क्स देने में भी लापरवाही हो जाती है. यह बात सोचने पर मजबूर करती है कि जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के भविष्य का सवाल है, तो सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए. उम्मीद है कि शिक्षा बोर्ड इस मसले को मंत्रालय तक पहुंचाएगा और जल्द ही कोई समाधान निकलेगा.

संदीप तिवारी एक मंझे हुए पत्रकार हैं, जो आर्थिक नीतियों, लेबर कानूनों और नौकरी बाज़ार पर उनके ज़मीनी असर पर रिपोर्टिंग करने में माहिर हैं। उनका बारीकी से रिसर्च करना और तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग ही हमारी नौकरी से जुड़ी खबरों और अपडेट्स की सटीकता और भरोसेमंद होने की गारंटी है।